11 Messages
रघुपति बिमुख जतन कर कोरी। कवन सकइ भव बंधन छोरी॥
जीव चराचर बस कै राखे। सो माया प्रभु सों भय भाखे॥
भावार्थ:
-श्री रघुनाथ जी से विमुख रहकर मनुष्य चाहे करोड़ों उपाय करे, परन्तु उसका संसार बंधन कौन छुड़ा सकता है।
जिसने सब चराचर जीवों को अपने वश में कर रखा है, वह माया भी प्रभु से भय खाती है॥
जय जय श्री सीता राम जी
माटी का एक नाग बनाके पूजे लोग लुगाया,
जिंदा नाग जब घर में निकले ले लाठी धमकाया।
जिंदा बाप कोई न पूजे, मरे बाद पुजवाया,
मुठ्ठीभर चावल लेके कौवे को बाप बनाया।
यह दुनिया कितनी बावरी है जो पत्थर पूजे जाय,
घर की चकिया कोई न पूजे, जिसका पिसा खाय।
भावार्थ:- जो जीवित है उनकी सेवा करो, वही सच्चा श्राद्ध है